
बिहार के लोकनृत्य को नई पहचान देने वाले प्रसिद्ध नृत्यगुरु श्री विश्वबंधु जी अब हमारे बीच नहीं रहे। दिल्ली में उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके अनुज जीतेन्द्र चौरसिया ने यह दुखद समाचार सिसकते हुए साझा किया। बताया गया कि गुरुजी बाथरूम में गिर गए थे, जिसके बाद उन्हें अस्पताल ले जाया गया, लेकिन डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
लोककला का एक उज्ज्वल सूर्य अस्त हो गया
लोकनृत्य और लोकगीतों के संरक्षण में अपना संपूर्ण जीवन समर्पित करने वाले विश्वबंधु जी का जाना बिहार की सांस्कृतिक विरासत के लिए अपूरणीय क्षति है। उन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी बिहार के लोकनृत्यों को एक नई ऊंचाई देने में लगा दी। उनकी अनूठी शैली और समर्पण ने बिहार के पारंपरिक लोकनृत्यों को राष्ट्रीय पहचान दिलाई।
उनसे दो महीने पहले हुई बातचीत में उन्होंने कहा था— “अब मैं चल-फिर नहीं सकता, लेकिन मेरी कलम आज भी निरंतर चल रही है।” यह शब्द उनके अटूट समर्पण का प्रमाण हैं। उनके जीवन का प्रत्येक क्षण कला और संस्कृति के लिए समर्पित था। यह उम्मीद की जाती है कि उनके द्वारा लिखित लोकगीत और शोध किसी किताब के रूप में प्रकाशित होंगे, जिससे आने वाली पीढ़ियां उनके योगदान से लाभान्वित हो सकें।
राष्ट्रीय पुरस्कार के बावजूद यथोचित सम्मान से वंचित रहे
विश्वबंधु गुरुजी को राष्ट्रीय टैगोर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, लेकिन उनकी कला और योगदान का जो सही मूल्यांकन होना चाहिए था, वह अभी भी अधूरा है। उनका कार्य केवल पुरस्कारों और सम्मानों से नहीं आँका जा सकता, बल्कि यह बिहार और भारत की लोकसंस्कृति के लिए एक धरोहर है।
बिहार की लोकसंस्कृति को जीवंत बनाने वाले नायक
विश्वबंधु गुरुजी ने न केवल बिहार के पारंपरिक नृत्य झिझिया, जट-जटिन, सामा-चकेवा, बिदेसिया और नकटा नाच को सहेजा, बल्कि उन्हें मंचों तक पहुंचाया। उनके निर्देशन में न जाने कितने कलाकारों ने प्रशिक्षण प्राप्त कर बिहार की सांस्कृतिक पहचान को वैश्विक स्तर तक पहुँचाया। उनके कई शिष्य आज देश-विदेश में लोकनृत्य को जीवंत बनाए हुए हैं।
श्रद्धांजलि
आज जब वे हमारे बीच नहीं हैं, तब उनकी अनुपस्थिति केवल एक व्यक्ति का जाना नहीं, बल्कि एक युग का अंत है। तिरहूत न्यूज परिवार की ओर से श्रद्धांजलि एवं शत-शत नमन। बिहार की सांस्कृतिक धरोहर को संजोने वाले इस महान व्यक्तित्व की कमी हमेशा खलेगी।