“उजड़ते घरों की चीख और एक नेता की पुकार: अजीत कुमार ने उठाई भूमिहीनों की आवाज”

Tirhut News

रिपोर्ट: तिरहूत न्यूज़ ब्यूरो | मरवन, मुज़फ्फरपुर : झोपड़ी भले अस्थायी हो, मगर उसके नीचे पलती ज़िंदगी स्थायी होती है।

मरवन प्रखंड के दर्जनों गांवों में शनिवार को जब भाजपा के वरिष्ठ नेता व पूर्व मंत्री अजीत कुमार जन संवाद कार्यक्रम में पहुंचे, तो वहां सिर्फ राजनीतिक बातें नहीं हुईं — वहां उन टूटते सपनों की बात हुई, जो प्रशासन के एक नोटिस से बिखरने वाले हैं।

‘पहले बसाओ, फिर हटाओ’ — अजीत कुमार की साफ चेतावनी

अजीत कुमार ने मंच से प्रशासन को दो टूक कहा —

“सरकार की मंशा गरीबों को उजाड़ने की नहीं, बसाने की है। जब प्रधानमंत्री आवास योजना में भूमिहीनों को पक्का मकान देने का प्रावधान है, तो अतिक्रमण के नाम पर उन्हें क्यों उजाड़ा जा रहा है?”

उन्होंने कांटी क्षेत्र, दादर और हरपूर लौहड़ी के बीच बसे सैकड़ों परिवारों का हवाला दिया जो गंडक नदी से विस्थापित हैं और अब वर्षों से बांध किनारे रह रहे हैं। ये वे लोग हैं जो अपना नाम सरकारी सूची में दर्ज कराने के लिए वर्षों से दौड़ लगा रहे हैं — लेकिन अब प्रशासन की नोटिस इनके घर गिराने को तैयार है।

जमीनी सच्चाई बनाम कागजी कार्रवाई

क्या कोई अतिक्रमणकारी हो सकता है जो अपनी झोपड़ी में मिट्टी की दीवार, टीन की छत और तिरपाल से बच्चों को ढंक कर रखता है?

इन सवालों ने अजीत कुमार को भी भावुक कर दिया। उन्होंने जिलाधिकारी से अपील की कि ऐसे सभी भूमिहीन गरीबों को प्राथमिकता पर जमीन उपलब्ध कराई जाए, जिससे उन्हें सम्मानपूर्वक जीवन मिल सके।

जन संवाद में फूटा दर्द: बिजली बिल से राशन कार्ड तक

ग्रामीणों ने खुलकर अपनी समस्याएं रखीं, जिनमें ये प्रमुख मुद्दे सामने आए:

• बिजली विपत्र में गड़बड़ी: गरीब परिवारों पर हजारों का बिल, जबकि खपत न्यूनतम।

• प्रधानमंत्री आवास योजना में भेदभाव: अपात्रों को लाभ, पात्र आज भी इंतजार में।

• राशन कार्ड से वंचना: कई भूमिहीन परिवार अब भी सरकारी अनाज से वंचित।

• भूमिहीनों को सरकारी जमीन: पुनर्वास नहीं हुआ तो कानूनन अधिकार की लड़ाई आगे बढ़ेगी।

नेताओं की मौजूदगी, जनभावना की ताकत

कार्यक्रम में पूर्व मुखिया किशुन पासवान, प्रोफेसर नवल किशोर राय, राजेश कुशवाहा, विजय पटेल, प्रमोद चौधरी, रामकरण भगत समेत तीन दर्जन से ज्यादा सामाजिक-राजनीतिक प्रतिनिधि शामिल हुए। उन्होंने भी इस मुद्दे को राजनीतिक नहीं, मानवीय दृष्टिकोण से देखने की अपील की।

तिरपाल के नीचे दबे अधिकार

ये सिर्फ उजड़ते घरों की कहानी नहीं है — ये उस तंत्र की तस्वीर है जो ‘घर हर किसी का हक’ कहता है, लेकिन जमीन देने में हिचकता है।

तिरहूत न्यूज़ सवाल पूछता है:

“क्या किसी गरीब की ज़िंदगी की कीमत एक नोटिस से तय होनी चाहिए?”

या फिर, क्या अब समय आ गया है कि प्रशासन संवेदनशीलता और न्याय के साथ अपने निर्णय ले?

(जारी…)

तिरहूत न्यूज़ इस मुद्दे पर अगली रिपोर्ट में प्रभावित परिवारों की ज़ुबानी कहानी लाएगा। जुड़े रहिए।

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