
पटना | तिरहूत न्यूज़ ब्यूरो: भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने 6 अप्रैल 2025 को अपनी स्थापना के 45 साल पूरे कर लिए। दिल्ली से लेकर बिहार तक पार्टी फर्श से अर्श तक पहुंची, मगर बिहार में अब भी अपना मुख्यमंत्री देने का सपना अधूरा है। नीतीश कुमार और गठबंधन की राजनीति में भागीदारी के बावजूद बीजेपी आज तक राज्य में सीएम पद तक नहीं पहुंच सकी।
जनसंघ से बीजेपी तक: एक संघर्षशील राजनीतिक यात्रा
BJP की नींव भारतीय जनसंघ से पड़ी, जिसकी स्थापना 21 अक्टूबर 1951 को हुई थी। बिहार में 1962 के चुनाव में जनसंघ ने हिलसा, नवादा और सिवान सीटों पर जीत दर्ज कर शुरुआत की। इसके बाद 1967 में 271 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और 26 पर जीत मिली। 1969 में यह संख्या बढ़कर 34 हो गई।
1970 से 1980: जब राजनीति में नया मोड़ आया
1970 के दशक में राजनीतिक घटनाक्रम तेजी से बदले। जनसंघ ने अन्य दलों के साथ मिलकर जनता पार्टी बनाई। 1980 में दोहरी सदस्यता विवाद के चलते जनसंघ अलग हुआ और 6 अप्रैल 1980 को भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ।
बिहार बीजेपी के स्तंभ रहे ये नेता
• शिवकुमार द्विवेदी: बिहार में जनसंघ के पहले अध्यक्ष।
• कैलाशपति मिश्र: बीजेपी बिहार के पहले अध्यक्ष, जो खुद रिक्शे पर बैठ प्रचार करते थे।
• गंगा प्रसाद चौरसिया: जनसंघ काल से जुड़े, मुंबई के जुहू चौपाटी में हुई स्थापना में पूरे परिवार के साथ शामिल हुए।
• रमाकांत पांडे: जेपी और जनसंघ के बीच सेतु बने, राज्यपाल बनने का ऑफर ठुकराया।
• अमरेंद्र प्रताप सिंह: कार्यकर्ता जीवन की मिसाल, बासी भात खाकर करते थे प्रचार।
“हमारे घर की कुर्की हुई थी, तब सरेंडर किया” – गंगा बाबू की यादें
पूर्व राज्यपाल गंगा प्रसाद ने तिरहूत न्यूज़ से कहा:
“आपातकाल के दौरान जब पुलिस हमारे घर के पशु ले जाने लगी तो हमने आत्मसमर्पण किया। हमारा घर ही पार्टी का कार्यालय बन गया था।”
राजनीतिक जनून और जमीनी संघर्ष की मिसाल
अमरेंद्र प्रताप सिंह कहते हैं:
“एक दिन में 10-15 किमी पैदल चलना, चना-चबेना खाना, मिट्टी के बर्तन में खाना बनाना… यही बीजेपी की असली ताकत रही। लालकृष्ण आडवाणी और नानाजी देशमुख भी मेरे मोटरसाइकिल पर प्रचार करते थे।”
बिहार विधानसभा में BJP का प्रदर्शन
अब तक क्यों नहीं बना BJP का मुख्यमंत्री?
हालांकि भाजपा बिहार में दो-दो डिप्टी सीएम दे चुकी है – सुशील मोदी, तारकिशोर प्रसाद, रेणु देवी, सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा – लेकिन मुख्यमंत्री पद अब भी दूर की कौड़ी बना हुआ है। सवाल यह है कि 45 साल बाद भी क्या पार्टी इस सपने को साकार कर पाएगी?
भाजपा ने लंबा सफर तय किया है – संघर्ष से लेकर सत्ता तक। लेकिन बिहार में ‘अपना मुख्यमंत्री’ बनाने का सपना अब भी अधूरा है। आने वाले विधानसभा चुनावों में क्या यह सपना पूरा होगा? यह वक्त ही बताएगा।
लेखक: धीरज ठाकुर, तिरहूत न्यूज़