
पटना/विशेष रिपोर्ट @तिरहूत न्यूज़
बिहार की राजनीति एक बार फिर उबाल पर है। इस बार विवाद की जड़ है वक्फ संपत्ति प्रबंधन से जुड़ा नया कानून, जिसे संसद में पास किए जाने के बाद राज्य की राजनीति में ‘असली गिरगिट कौन?’ जैसे तीखे आरोप-प्रत्यारोप शुरू हो गए हैं।
राजद vs जदयू: पोस्टर से संसद तक संग्राम
राजद ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को ‘गिरगिट’ बताते हुए राजधानी पटना में पोस्टर लगाए हैं। जवाब में जदयू ने 2010 में लोकसभा में दिए गए लालू प्रसाद यादव के भाषण का हवाला देकर पलटवार किया है – “वक्फ पर कड़ा कानून तो खुद लालू जी ने मांगा था, अब विरोध क्यों?”
जदयू का पलटवार और सफाई
जदयू प्रवक्ता अंजुम आरा का कहना है कि पार्टी ने बिना शर्त समर्थन नहीं किया। “हमने JPC की पांच बड़ी सिफारिशें मानी जाने के बाद ही समर्थन दिया – जैसे कि भूमि का राज्य सूची में रहना, धार्मिक संरचनाओं की सुरक्षा, अपंजीकृत जमीन पर स्पष्टता और डिजिटलीकरण की समय सीमा में विस्तार।”
तेजस्वी का शपथवाक्य और राजद का तेवर
राजद नेता तेजस्वी यादव ने इस बिल को ‘असंवैधानिक’ करार देते हुए एलान किया, “अगर हमारी सरकार बनी तो वक्फ बिल को कूड़ेदान में फेंक देंगे।” तेजस्वी का यह बयान राज्य की सियासत में एक नई बहस की शुरुआत है – क्या यह धार्मिक भावनाओं के नाम पर राजनीति है या वाकई अल्पसंख्यक हितों की रक्षा?
राज्यपाल की एंट्री: सियासी आग में घी
राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने खुलकर बिल का समर्थन करते हुए वक्फ बोर्डों पर सवाल उठाए – “कौन सा बोर्ड वाकई में अनाथालय या अस्पताल चला रहा है?” उनका यह बयान विपक्ष के लिए नया मुद्दा बन गया है तो समर्थकों के लिए बिल की वैधता का प्रमाण।
क्या कहते हैं जानकार?
कानून विशेषज्ञों का मानना है कि यह बिल प्रशासनिक पारदर्शिता और संपत्ति प्रबंधन में सुधार के उद्देश्य से लाया गया है, लेकिन इसमें राज्यों की भूमिका और धार्मिक भावनाओं के टकराव को लेकर चिंता भी जायज है।
तिरहूत का सवाल:
क्या वक्फ बिल राजनीतिक हथियार बन गया है या समाज सुधार की दिशा में एक जरूरी कदम?
अपनी राय कमेंट बॉक्स में जरूर दें। इस मुद्दे पर हम जल्द ही ग्राउंड रिपोर्ट और पब्लिक ओपिनियन भी प्रकाशित करेंगे।