
वर्दी को दागदार कर रहे नए बैच के थानाध्यक्ष, कुर्सी मिलते ही करने लगते हैं गैरकानूनी काम
रिपोर्ट: धीरज ठाकुर | तिरहूत न्यूज़
मुजफ्फरपुर: जनता की सेवा और कानून व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी जिन थानाध्यक्षों को दी जाती है, वही जब नियमों को ताक पर रखकर कानून तोड़ने लगें, तो पूरी व्यवस्था पर सवाल उठना लाज़मी है। हाल के दिनों में मुजफ्फरपुर जिले में तैनात नए बैच के कई दारोगा और इंस्पेक्टर, थानाध्यक्ष की कुर्सी पर बैठते ही गैरकानूनी गतिविधियों में संलिप्त पाए गए हैं।
नियम के बजाय रौब और रिश्वत का सहारा
कांटी, पानापुर करियात, हत्था, बेला, करजा जैसे थाना क्षेत्रों के थानाध्यक्षों को निलंबित किया जा चुका है। इन थानों में तैनात अधिकारियों ने न केवल जनता से दुर्व्यवहार किया बल्कि अपराधियों से साठगांठ और लापरवाही जैसी गंभीर चूकें कीं।
करजा थानाध्यक्ष बीरबल कुशवाहा – बालू माफिया से संबंध
हाल ही में करजा थानाध्यक्ष बीरबल कुशवाहा पर बालू माफिया से मिलीभगत का आरोप सिद्ध हुआ। जांच रिपोर्ट में इनकी भूमिका संदिग्ध पाई गई, जिसके बाद एसएसपी सुशील कुमार ने उन्हें तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया।
बेला थानाध्यक्ष रंजना वर्मा – शराब विनष्टीकरण में लापरवाही
जब्त शराब को नष्ट करने की प्रक्रिया में गंभीर लापरवाही बरतने के आरोप में बेला की तत्कालीन थानाध्यक्ष रंजना वर्मा निलंबित की गईं। मामले में थानाध्यक्ष के निजी मुंशी सहित दो अन्य आरोपियों को जेल भेजा गया।
पानापुर करियात थानाध्यक्ष – हिरासत में पिटाई
पूर्व थानाध्यक्ष राजबल्लभ यादव पर एक युवक की हिरासत में पिटाई का आरोप लगा, जिसके बाद उन्हें भी निलंबित किया गया।
हत्था थानाध्यक्ष – महिला कर्मी से अभद्रता
महिला पुलिसकर्मी के साथ अभद्र व्यवहार करने के मामले में तत्कालीन हत्था थानाध्यक्ष शशि रंजन पर गाज गिरी।
कांटी थानाध्यक्ष – हिरासत में मौत और हत्या का केस
सबसे गंभीर मामला कांटी के तत्कालीन थानाध्यक्ष सुधाकर पांडेय का रहा, जिनकी हिरासत में एक युवक की मौत हुई। बाद में उनके खिलाफ हत्या की प्राथमिकी भी दर्ज की गई।
सबक नहीं ले रहे वर्दीधारी
इन घटनाओं के बावजूद जिले के अन्य थानाध्यक्षों का रवैया नहीं बदला है। आम लोगों से दुर्व्यवहार, शिकायतों को अनसुना करना और वर्दी का रौब दिखाना आम बात हो गई है। वरीय अधिकारी समय-समय पर चेतावनी और कार्रवाई करते रहे हैं, लेकिन सुधार की कोई स्थायी झलक नहीं दिख रही है।
विश्लेषण:
वर्दी सिर्फ ताकत नहीं, ज़िम्मेदारी का प्रतीक है। अगर इसे पहनने वाले ही कानून तोड़ने लगें तो आम नागरिक की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित होगी? प्रशासन को ऐसे अधिकारियों पर सख्त नजर रखने और ईमानदार अफसरों को प्रोत्साहित करने की ज़रूरत है।