अंबेडकर के विचारों पर जन सुराज की पहल: जब न्याय, समानता और संविधान की बात हुई पटना में

Tirhut News

पटना, तिरहूत न्यूज़ डेस्क:

135वीं अंबेडकर जयंती पर जहां देशभर में बाबा साहेब को श्रद्धांजलि दी जा रही थी, वहीं पटना में जन सुराज पार्टी ने संविधान और सामाजिक न्याय के मूल प्रश्नों पर एक गंभीर बहस की शुरुआत की। पार्टी मुख्यालय में आयोजित “वर्तमान संदर्भ में अंबेडकर के विचारों की चुनौतियां” विषयक संगोष्ठी ने विचार और विमर्श के स्तर को एक नई ऊँचाई दी।

इस संगोष्ठी के मुख्य वक्ता न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) राजेंद्र प्रसाद और पटना विश्वविद्यालय के प्रो. शिवजतन ठाकुर थे। दोनों वक्ताओं ने डॉ. भीमराव अंबेडकर के विचारों को न सिर्फ ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में रखा, बल्कि आज की चुनौतियों से उसे जोड़ा।

जब विचार अमर हो जाते हैं: न्यायमूर्ति राजेंद्र प्रसाद का वक्तव्य

“व्यक्ति मर जाता है, विचार नहीं,”—अपने संबोधन की शुरुआत इन्हीं शब्दों से करते हुए न्यायमूर्ति राजेंद्र प्रसाद ने डॉ. अंबेडकर के संघर्षशील जीवन और दूरदृष्टि पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा,

“डॉ. अंबेडकर को चुनौती नहीं दी जा सकती, क्योंकि उन्होंने जो कहा और किया, वह आज भी प्रासंगिक है। आज की सबसे बड़ी चुनौती है – हम स्वयं। क्या हम उनके विचारों पर चलने के लिए तैयार हैं?”

अभी भी अधूरी है अंबेडकर की कल्पना: प्रो. शिवजतन ठाकुर

प्रोफेसर ठाकुर ने कहा कि अंबेडकर ने एक ऐसे भारत की कल्पना की थी, जहाँ राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक समानता हो, लेकिन आज भी हम उस भारत को नहीं बना सके हैं।

उन्होंने चेताया कि

“संविधान लागू होने के इतने वर्षों बाद भी यदि हम सामाजिक न्याय, जातीय समानता और शिक्षा के सवालों से जूझ रहे हैं, तो हमें खुद से सवाल करने होंगे।”

राजनीति से परे सामाजिक चेतना का मंच

पार्टी अध्यक्ष मनोज भारती, पूर्व विधान परिषद सदस्य रामबली चंद्रवंशी, वरीय अधिवक्ता वाई.वी. गिरी, वरिष्ठ नेता आर. के. मिश्रा और एन. पी. मंडल ने भी संगोष्ठी में विचार रखे।

कार्यक्रम का संचालन व धन्यवाद ज्ञापन अनिल आर्य ने किया।

विश्लेषण: क्यों ज़रूरी है आज अंबेडकर को समझना?

भारत आज कई स्तरों पर बदलाव के दौर से गुजर रहा है—राजनीतिक ध्रुवीकरण, सामाजिक असमानता और आर्थिक असंतुलन जैसी समस्याएं गहरी हो रही हैं। ऐसे समय में अंबेडकर के विचार एक प्रकाशस्तंभ की तरह हैं। जन सुराज पार्टी की यह पहल एक राजनीतिक कार्यक्रम से अधिक एक वैचारिक आत्ममंथन के रूप में सामने आई।

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