दानवीर लंगट सिंह: कुली से कॉलेज के संस्थापक बनने की प्रेरणादायक गाथा 113वीं पुण्यतिथि पर विशेष श्रद्धांजलि

Tirhut News

तिरहूत न्यूज़: बिहार के इतिहास में ऐसे विरले ही लोग हुए हैं, जिन्होंने अपनी मेहनत, दूरदृष्टि और दानशीलता से समाज को नई दिशा दी। ऐसे ही एक महान व्यक्ति थे दानवीर बाबू लंगट सिंह, जिनकी 113वीं पुण्यतिथि पर आज पूरा तिरहूत उन्हें नमन करता है।

आपने लंगट सिंह कॉलेज, मुज़फ्फरपुर का नाम तो जरूर सुना होगा, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसके संस्थापक एक किसान परिवार में जन्मे, मात्र चौथी कक्षा तक पढ़े हुए, रेलवे में कुली की नौकरी करनेवाले एक साधारण व्यक्ति थे?

कुली से शिक्षाविद बनने की यात्रा

बाबू लंगट सिंह का जन्म मुज़फ्फरपुर के धरहरा गांव में हुआ था। शुरुआती जीवन संघर्षपूर्ण रहा। उन्होंने दरभंगा-समस्तीपुर रेलवे लाइन के टेलीफोन सेक्शन में कार्य करना शुरू किया। मेहनती, मितभाषी और निष्ठावान लंगट सिंह ने अंग्रेज इंजीनियर ग्रीयर विल्सन का भरोसा जीत लिया। इसी के परिणामस्वरूप उन्हें रेलवे टेलीफोन की ठेकेदारी मिल गई, जिससे उन्होंने कुछ ही वर्षों में आर्थिक समृद्धि हासिल की।

शिक्षा के लिए दान, समाज के लिए समर्पण

सन 1899 में, जब जमींदार और राजा-महाराजा ही शिक्षण संस्थानों की स्थापना करते थे, तब लंगट सिंह ने भूमिहार ब्राह्मण कॉलेजियट स्कूल (वर्तमान में लंगट सिंह कॉलेज) की नींव रखी और इसके लिए 13 एकड़ ज़मीन एवं आर्थिक सहायता दी।

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) को मिला एक लाख का चंदा

लंगट सिंह को दरभंगा नरेश ने महामना मदन मोहन मालवीय जी से परिचय करवाया और BHU की स्थापना से पूर्व हुई बैठक में उन्हें आमंत्रित किया। जब विश्वविद्यालय निर्माण के लिए चंदे की बात आई, तो वहां मौजूद सभी महाराजा और दानदाता चकित रह गए, जब बाबू लंगट सिंह ने ₹1,00,000 (एक लाख रुपये) दान देने की घोषणा की—आज के समय में यह राशि कई करोड़ों के बराबर मानी जाएगी।


दिनकर जैसे साहित्यकार भी रहे इस कॉलेज से जुड़े

इस कॉलेज की गरिमा का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर यहाँ व्याख्याता रह चुके हैं।

कम चर्चित पर अत्यंत प्रेरणादायक व्यक्तित्व

बाबू लंगट सिंह पर पहली जीवनी प्रसिद्ध लेखक रामवृक्ष बेनीपुरी ने लिखी थी। फिर भी आज बिहार उन्हें सिर्फ एक कॉलेज के नाम से जानता है, जबकि उनका जीवन स्वयं में प्रेरणा का प्रतीक है।
आज, जब शिक्षा के क्षेत्र में निजीकरण और व्यावसायिकता हावी है, तब बाबू लंगट सिंह जैसे दानवीर का स्मरण हमें बताता है कि सच्चा शिक्षाविद वही है जो बिना किसी लोभ के समाज के लिए अपना सर्वस्व अर्पित कर दे।

तिरहूत न्यूज़ परिवार की ओर से उन्हें शत-शत नमन।

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