तीन गायों से की थी शुरुआत, आज 25 गायों से डेयरी कारोबार; महीने के कमा रहे डेढ़ लाख, दे रहे रोजगार भी

Tirhut News

मुजफ्फरपुर, तिरहूत न्यूज़

कोरोना महामारी में जहां लाखों युवाओं की नौकरियां गईं, वहीं कुछ ने इसे अवसर में बदल दिया। पताही गांव के प्रशांत उर्फ मोनू कुमार ने भी यही किया। 26 साल की उम्र में नौकरी छूटी, तो निराश होने के बजाय उन्होंने गोपालन को अपनाया। आज वे न केवल डेढ़ लाख रुपए महीना कमा रहे हैं, बल्कि दूसरे युवाओं को भी रोजगार दे रहे हैं।

प्रशांत बताते हैं कि उन्होंने सिर्फ तीन गायों से शुरुआत की थी। अब उनके पास 25 गायें हैं। इनमें से 12 गायें प्रतिदिन करीब 8 लीटर दूध देती हैं, जिससे रोज़ाना 96 से 100 लीटर दूध प्राप्त होता है। यह दूध वे स्थानीय डेयरी को बेचते हैं, जिससे 4800 से 5000 रुपए प्रतिदिन की कमाई होती है।

केवल दूध ही नहीं, बल्कि अच्छी नस्ल के बछड़ों की बिक्री और अन्य दुग्ध-उत्पादों से भी अतिरिक्त आमदनी होती है। एक गाय पर औसतन 5000 रुपए मासिक खर्च आता है, यानी पूरे फार्म पर करीब एक लाख रुपए प्रति माह खर्च होता है। इन सबके बाद भी प्रशांत की शुद्ध आय लगभग डेढ़ लाख रुपए महीना है।

गांव के युवाओं को भी मिल रहा रोज़गार

प्रशांत अकेले नहीं काम कर रहे। उनके साथ करीब आधा दर्जन बेरोजगार युवक भी इस फार्म से जुड़े हैं और रोजगार पा रहे हैं। भविष्य में प्रशांत का सपना है कि वे इस डेयरी फार्म को इतना बड़ा बनाएं कि 100 से 200 युवाओं को रोजगार दे सकें

शुरुआत में लोगों ने उड़ाया था मजाक

प्रशांत एक निजी कंपनी में काम करते थे, लेकिन महामारी में नौकरी छूट गई। कुछ महीने खाली बैठने के बाद उन्होंने गाय खरीदने का निर्णय लिया। शुरुआत में लोगों ने मजाक उड़ाया, लेकिन आज वही लोग उन्हें मिसाल के रूप में देखते हैं।

सरकारी सहायता की कमी बनी सबसे बड़ी बाधा

प्रशांत का कहना है कि सरकार की योजनाएं केवल कागज़ों पर हैं। वास्तविक ज़रूरत पड़ने पर ऋण और सहायता प्राप्त करना मुश्किल हो जाता है। अगर प्रक्रियाएं सरल हों और सही समय पर मदद मिले, तो गोपालन भी एक मजबूत ग्रामीण स्टार्टअप मॉडल बन सकता है।

“गांव में रहकर भी बड़ा सपना देखा जा सकता है। जरूरत है तो सिर्फ मेहनत, धैर्य और सही मार्गदर्शन की,” प्रशांत कहते हैं।
पहले एक निजी कंपनी में काम करते थे। महामारी में नौकरी चली गई। कुछ समय घर पर रहे। फिर तीन गाएं खरीदीं। धीरे-धीरे संख्या बढ़ाई। ये कहते हैं कि शुरुआत में लोगों ने मजाक भी उड़ाए। लेकिन, ठान लिया था कि कुछ करके दिखाना है। अब वही लोग मिसाल देते हैं। हालांकि, पूंजी की कमी और सरकारी मदद नहीं मिलने से ऐसे कार्य बड़ी चुनौती है। सरकारी योजनाएं सिर्फ कागजों पर हैं। दिखाने के लिए अनेक योजनाएं हैं, लेकिन जरूरत पड़ने पर इतनी प्रक्रियाएं हैं कि सहायता तो दूर, ऋण मिलना भी मुश्किल है। अगर सरकारी मदद मिले, तो युवाओं के लिए भी यह एक अच्छा स्टार्टअप हो सकता है। गांव में रहकर भी बड़ा सपना देखा जा सकता है।

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