

रिपोर्ट: धीरज ठाकुर | तिरहूत न्यूज
“बीजेपी के DNA में ही जातिगत जनगणना का विरोध है।”
यह तीखा बयान कांग्रेस नेता रंदीप सिंह सुरजेवाला का है, जिन्होंने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर जातिगत जनगणना को दबाने और उससे भागने का आरोप लगाया है।
2011 की जाति आधारित जनगणना: क्या हुआ था?
सुरजेवाला ने बताया कि 2011 में यूपीए सरकार के कार्यकाल में सामाजिक, आर्थिक और जाति जनगणना (SECC) कराई गई थी। लेकिन जब 2014 में बीजेपी सत्ता में आई, तो इस रिपोर्ट को दबा दिया गया।
16 जुलाई 2015 को, यह रिपोर्ट प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता वाली कैबिनेट के सामने रखी गई थी। उस बैठक में निर्णय लिया गया कि नीति आयोग के उपाध्यक्ष के नेतृत्व में एक विशेषज्ञ समूह इस पर काम करेगा।
लेकिन रिपोर्ट का क्या हुआ?
सुप्रीम कोर्ट में 2021 में दाखिल शपथपत्र के अनुसार:
• कोई सदस्य नामित नहीं किया गया।
• विशेषज्ञ समूह की कोई बैठक नहीं हुई।
• सरकार ने जनगणना में इसे शामिल करने से साफ इनकार कर दिया।
सरकार ने अदालत में यह भी कहा कि:
• जातिगत जनगणना प्रशासनिक रूप से संभव नहीं है।
• इसके आंकड़े भ्रामक या अविश्वसनीय हो सकते हैं।
• यह एक नीतिगत निर्णय है कि इसे 2021 की जनगणना में शामिल नहीं किया गया।
राजनीतिक अर्थ क्या हैं?
कई विपक्षी दल, खासकर बिहार, यूपी, झारखंड और दक्षिण भारत के दल, जातिगत जनगणना की मांग करते आ रहे हैं। उनका कहना है कि इससे सामाजिक न्याय की नीतियों को मजबूती मिलेगी।
सुरजेवाला का सीधा हमला:
“जब सरकार खुद विशेषज्ञ समिति नहीं बनाती, कोई सदस्य नामित नहीं करती और अदालत में कहती है कि यह संभव नहीं — तो अब और क्या प्रमाण चाहिए? भाजपा के डीएनए में ही जातिगत जनगणना का विरोध है।”
क्या यह सिर्फ राजनीतिक एजेंडा है?
जातिगत जनगणना के मुद्दे पर राजनीतिक फायदे-नुकसान का भी विश्लेषण जरूरी है। क्या सरकार वाकई इससे डरती है कि हकीकत सामने आ जाएगी? या क्या यह कदम सामाजिक समीकरणों को संभालने के लिए लिया गया है?
तिरहूत न्यूज इस विषय पर लगातार विशेष रिपोर्टिंग करता रहेगा।
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