
स्पेशल पॉलिटिकल स्टोरी | तिरहूत न्यूज़
नीतीश के गांव से उठी विरोध की लहर: जन सुराज के अभियान के क्या हैं सियासी मायने?
कल्याण बिगहा/पटना।
राजनीतिक रूप से गर्म हो चुके बिहार में अब विरोध की आवाज़ मुख्यमंत्री के अपने गांव से उठ रही है। जन सुराज पार्टी ने नीतीश कुमार के “वादाखिलाफी मॉडल” और सरकार में फैले कथित भ्रष्टाचार के खिलाफ एक जन अभियान शुरू किया है। यह महज एक आंदोलन नहीं, बल्कि सत्ता की चूलें हिलाने की रणनीतिक कोशिश मानी जा रही है।
11 मई से शुरू होकर 11 जुलाई तक चलने वाला यह हस्ताक्षर अभियान, राज्य की सियासत में कई बड़े संकेत छोड़ रहा है। पार्टी का लक्ष्य है – 1 करोड़ लोगों के हस्ताक्षर के साथ नीतीश सरकार को आईना दिखाना।
मुख्यमंत्री के गांव से क्यों शुरू हुआ आंदोलन?
जन सुराज ने जानबूझकर नीतीश कुमार के गांव कल्याण बिगहा को इस अभियान की शुरुआत के लिए चुना है। यह प्रतीकात्मक है और एक सीधी राजनीतिक चुनौती भी। पार्टी का कहना है कि जिन वादों की घोषणाएं नीतीश कुमार ने खुद की थीं, उनका हिसाब जनता अब उनसे उनके दरवाज़े पर जाकर मांगेगी।
घोषणाएं जो ज़मीन पर नहीं उतरीं
जन सुराज तीन बड़े वादों पर सरकार से जवाब मांग रहा है:
• 94 लाख परिवारों को 2 लाख रुपये की आर्थिक सहायता – हकीकत में आंकड़े गायब हैं।
• 40 लाख गरीब परिवारों को 1.2 लाख रुपये की मदद – जमीन पर कितनों को मिला, यह अब भी सवाल है।
• भूमिहीनों को 3 डिसमिल जमीन देने का वादा – सरकार की ही रिपोर्ट कहती है, 2.34 लाख को ज़मीन मिली लेकिन आधे को मालिकाना हक नहीं।
इस परिप्रेक्ष्य में यह सवाल भी बड़ा होता जा रहा है कि क्या सरकार का “सर्वे और स्कीम मॉडल” सिर्फ चुनावी स्टंट बनकर रह गया है?
जनता बनाम शासन – एक नया जनादेश?
जन सुराज पार्टी का यह अभियान आम जन को सीधा सशक्त बनाकर सवाल पूछने के लिए प्रेरित कर रहा है। यह न सिर्फ जनता को केंद्र में लाने की कोशिश है, बल्कि मौजूदा सत्ता के खिलाफ एक ग्राउंड लेवल नेटवर्किंग का ट्रायल भी।
सियासी विश्लेषण: खतरे की घंटी या जनाधार की तलाश?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भले ही जन सुराज पार्टी का वर्तमान जनाधार सीमित हो, लेकिन 1 करोड़ लोगों का डाटा बेस तैयार करना और उसे राजनीतिक हथियार बनाना, 2025 विधानसभा चुनाव की पृष्ठभूमि में एक चतुर रणनीति है।
अगर सरकार ने इन मांगों पर मौन साधा, तो जन सुराज ने विधानसभा घेराव की चेतावनी भी दे दी है। यह आंदोलन, विपक्षी दलों के लिए भी एक मिसाल बन सकता है कि मुद्दों पर केंद्रित अभियान कैसे चलाया जाए।
नीतीश कुमार के गांव से उठी यह आवाज़ केवल एक आंदोलन नहीं, सत्ता के विरुद्ध एक जनमंथन है। अब देखना यह है कि क्या यह लहर आने वाले समय में सियासी तूफान में बदलेगी, या यह भी बिहार की राजनीति में एक और अधूरी कहानी बनकर रह जाएगी?
रिपोर्ट: तिरहूत न्यूज़ स्पेशल पॉलिटिकल डेस्क