
स्पेशल स्टोरी | अपराध की धरती पर खामोशी क्यों?
रामपुरहरि की बेटी के साथ दरिंदगी – कब जागेगा समाज?
रिपोर्टर: धीरज ठाकुर | तिरहूत न्यूज़
स्थान: मीनापुर, मुजफ्फरपुर | तारीख: 15 मई 2025
एक तरफ़ “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” की बातें और दूसरी तरफ़ बेटियों के साथ दरिंदगी। रामपुरहरि के एक गांव में मंगलवार की रात जो हुआ, वह सिर्फ़ एक अपराध नहीं, बल्कि इंसानियत को शर्मसार करने वाला घिनौना अध्याय है। एक किशोरी, जो रात को शौच के लिए निकली थी, उसके साथ तीन युवकों ने सामूहिक दुष्कर्म किया, वीडियो बनाया और उसे वायरल कर दिया।
गांव में तनाव, लेकिन इंसाफ की उम्मीद धुंधली
वीडियो के वायरल होते ही गांव में तनाव फैल गया। गुस्साए ग्रामीणों ने दो आरोपियों को पकड़कर पुलिस को सौंप दिया। तीसरा फरार है। दो आरोपी नाबालिग हैं और तीसरा – राजा कुमार – दो बच्चों का पिता है, जो पहले भी इसी युवती से दुर्व्यवहार की कोशिश कर चुका था।
पिछली बार राजा को गांव के मुखिया की चेतावनी पर छोड़ दिया गया था। यही “समझौता संस्कृति” आज एक बड़ी त्रासदी में बदल गई। सवाल उठता है – क्या पहले ही कड़ा कदम उठा लिया गया होता, तो यह घटना टल सकती थी?
फॉरेंसिक जांच और एफआईआर – आगे क्या?
थानाध्यक्ष सुजीत कुमार मिश्रा ने बताया कि तीनों आरोपियों के खिलाफ गंभीर धाराओं में एफआईआर दर्ज की गई है। फॉरेंसिक टीम ने सबूत जुटा लिए हैं। लेकिन यह सिर्फ़ कागज़ी कार्रवाई न बन जाए – यही डर है।
ग्रामीण एसपी, एएसपी और निरीक्षक ने गांव पहुंचकर जांच की, लेकिन क्या इसके बाद भी पीड़िता और उसके परिवार को न्याय मिल पाएगा?
दूसरी तरफ़: इंस्टाग्राम से दिल्ली तक का धोखा
इस केस के साथ एक और पीड़ा सामने आई है। सरैयागंज की युवती ने दरभंगा के युवक श्याम बाबू पर दिल्ली में शादी का झांसा देकर छह महीने तक यौन शोषण करने और जबरन गर्भपात कराने का आरोप लगाया है। सोशल मीडिया से शुरू हुई दोस्ती, एक बड़ी साजिश में बदल गई। सवाल उठता है कि क्या हमारी बेटियाँ सुरक्षित हैं?
विश्लेषण: बेटियाँ असुरक्षित, समाज मौन, सिस्टम निष्क्रिय
• क्या हम सिर्फ़ वीडियो वायरल होने का इंतज़ार करते हैं?
• क्या “पहली बार छोड़ दो” की सोच ही दूसरी बार अपराध को बढ़ावा देती है?
• क्या सोशल मीडिया आज ‘शिकार’ खोजने का मंच बन गया है?
तिरहूत न्यूज़ की अपील
• प्रशासन से: तेज़ और निष्पक्ष कार्रवाई हो।
• समाज से: अपराधी को जाति, समुदाय, उम्र या ‘पहली बार’ के आधार पर न बचाएँ।
• मीडिया से: पीड़िता की पहचान उजागर न करें, संवेदना रखें।
• पाठकों से: ऐसी घटनाओं पर चुप न रहें। आवाज़ उठाएँ।
यह सिर्फ़ एक लड़की की लड़ाई नहीं, समाज की परीक्षा है।