

स्पेशल रिपोर्ट | तिरहूत न्यूज़
कोर्ट का निर्देश टाले तो क्या होगा? समस्तीपुर में कानून तोड़ने वालों को सिखाया कानून का पाठ!
रिपोर्टर: धीरज ठाकुर | स्थान: समस्तीपुर, बिहार
“न्यायालय का आदेश कानून होता है, और उसकी अवहेलना करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा।”
– समस्तीपुर के परिवार न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश
समस्तीपुर में शुक्रवार का दिन पुलिस प्रशासन के लिए ऐतिहासिक सबक बन गया, जब एक मेण्टेन्स एक्सक्यूशन केस में कोर्ट के आदेश का पालन नहीं करने पर डीएसपी और इंस्पेक्टर को छह घंटे तक कोर्ट में बैठाए रखा गया।
मामले की पृष्ठभूमि:
मुफस्सिल थाना क्षेत्र के मोहनपुर निवासी नौसर बीबी ने अपने पति मो. सोनू के खिलाफ मेन्टेन्स (भरण-पोषण) का मामला दायर किया था। कोर्ट ने सुनवाई के बाद अभियुक्त के खिलाफ गैर-जमानती वारंट और कुर्की-जब्ती का आदेश पारित किया।
लेकिन स्थानीय पुलिस ने आदेश का अनुपालन नहीं किया, जिससे नाराज होकर कोर्ट ने पहले थानाध्यक्ष से जवाब मांगा, फिर सदर डीएसपी को नोटिस जारी किया, लेकिन किसी ने जवाब नहीं दिया।
कोर्ट का बड़ा एक्शन:
• एसपी के माध्यम से दोनों अधिकारियों पर वारंट जारी
• अभियुक्त की गिरफ्तारी के बाद कोर्ट में पेशी
• डीएसपी और इंस्पेक्टर को कोर्ट में छह घंटे तक डिटेन किया गया
• कोर्ट परिसर के बाहर भारी भीड़ जमा
पीड़िता का दर्द:
नौसर बीबी की तरफ से केस लड़ रहे अधिवक्ता प्रणव कुमार लाल ने बताया:
“मो. सोनू 20 हजार रुपये देकर छूटा था और चार बार में पैसा चुकाने का वादा किया था, लेकिन न पैसा दिया, न कोर्ट में हाजिर हुआ।”
प्रशासन की चुप्पी और न्यायपालिका की सख्ती:
यह घटना सिर्फ एक महिला की लड़ाई नहीं, बल्कि कानून के सम्मान की लड़ाई है। यह उदाहरण बन गया कि अगर न्यायालय का आदेश नहीं माना गया तो पद चाहे कोई भी हो, जवाबदेही तय होगी।
विशेष विश्लेषण:
क्या कहता है कानून?
सीआरपीसी की धारा 125 के तहत मेन्टेन्स (भरण-पोषण) का अधिकार महिलाओं को प्राप्त है। इसका उल्लंघन करने पर न्यायालय कठोर कदम उठा सकता है।
पुलिस की निष्क्रियता क्यों?
यह सवाल अब प्रशासन के लिए चिंता का विषय है कि आदेशों को हल्के में लेना किस हद तक जायज़ है?
तिरहूत न्यूज़ की टिप्पणी:
समस्तीपुर की इस घटना ने न्याय और जवाबदेही का उदाहरण पेश किया है। तिरहूत न्यूज़ मानता है कि ऐसी कार्रवाई केवल कानून के डर से नहीं, जनता के भरोसे को जीवित रखने के लिए जरूरी है।