
पाकिस्तान की सत्ता का त्रिकोण: ज़मींदार, सेना और धार्मिक कट्टरता के खिलाफ अवाम की जंग
लेखक: वरिष्ठ पत्रकार उपेंद्र चौधरी | विशेष रिपोर्ट | तिरहूत न्यूज़
1947 में पाकिस्तान एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में बना था, लेकिन आज वहाँ सत्ता आम जनता के हाथों में नहीं, बल्कि एक ऐसे त्रिकोणीय गठजोड़ में है जो देश की रीढ़ बन चुका है—ज़मींदार, सेना और धार्मिक कट्टरपंथी। यही तीन ताकतें पाकिस्तान की राजनीति, अर्थव्यवस्था और समाज पर हावी हैं।
यह विश्लेषण बताता है कि पाकिस्तान की लोकतांत्रिक यात्रा को किस प्रकार इन शक्तियों ने बाधित किया, और कैसे आज भी आम जनता इनसे संघर्ष कर रही है।
1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: सत्ता का नींव कैसे पड़ा?
ब्रिटिश राज की विरासत
ब्रिटिश शासनकाल में पंजाब और सिंध के वफादार लोगों को ज़मीनें दी गईं। इसी से शक्तिशाली ज़मींदार वर्ग उभरा, जो आज भी ग्रामीण इलाकों और राजनीति दोनों में प्रभावशाली भूमिका निभाता है।
सेना का उदय
विभाजन के बाद कमजोर लोकतांत्रिक ढांचे और नेतृत्व की कमी ने सेना को हस्तक्षेप का अवसर दिया।
• 1958: जनरल अय्यूब खान ने पहला सैन्य तख्तापलट किया।
• उसके बाद कई बार सेना ने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से शासन किया।
आज भी सेना परदे के पीछे से सत्ता को नियंत्रित करती है।
2. आर्थिक व सामाजिक नियंत्रण: ज़मींदार और सेना का गठजोड़
कृषि और ज़मींदारों का वर्चस्व
• देश की 50% से ज्यादा ज़मीन मात्र 5% लोगों के कब्जे में है।
• किसानों को कर्ज़ और दबाव में रखकर उनका शोषण किया जाता है।
• चुनावों में वोट खरीदे जाते हैं और भू-सुधार की सभी कोशिशें नाकाम हो जाती हैं।
सेना का आर्थिक साम्राज्य
• फौजी फाउंडेशन, बहरिया टाउन, आर्मी वेलफेयर ट्रस्ट जैसे व्यवसायों से सेना की समानांतर अर्थव्यवस्था चलती है।
• अरबों डॉलर की संपत्ति पर नियंत्रण है, जिस पर कोई नागरिक निगरानी नहीं है।
3. धर्म का राजनीतिक इस्तेमाल और कट्टरता का प्रसार
ज़िया-उल-हक का इस्लामीकरण
1977 से शुरू हुई नीति के तहत:
• शरिया कानून लागू किए गए
• धार्मिक वोटिंग व्यवस्था बनाई गई
• मदरसों को संस्थागत रूप से बढ़ावा मिला
आतंकवाद और धार्मिक संगठनों का संरक्षण
• लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद जैसे कट्टर संगठनों को राज्य का संरक्षण मिला
• धार्मिक दलों ने हिंसा और ब्लैकमेल के जरिए सत्ता पर असर डाला
• समाज में भय और असहिष्णुता का वातावरण बना
4. लोकतंत्र और स्वतंत्रता पर हमला
मीडिया पर दबाव
• सेना और धार्मिक ताकतों की आलोचना करने वाले पत्रकारों को लापता किया गया या देश छोड़ने को मजबूर किया गया
• मीडिया स्वतंत्रता लगातार घटती जा रही है
राजनीतिक दमन
• असहमति रखने वाले नेताओं को जेल या अयोग्यता का सामना करना पड़ा
• चुनावों की निष्पक्षता पर सवाल उठे
5. आम जनता का संघर्ष और उम्मीद की किरण
उभरते आंदोलन
• पश्तून तहफ्फुज मूवमेंट (PTM) – सेना की ज्यादतियों के खिलाफ
• औरत मार्च – महिलाओं के अधिकारों के लिए
• स्टूडेंट सॉलिडेरिटी मार्च – शिक्षा और छात्र राजनीति के समर्थन में
ये आंदोलन डिजिटल मीडिया के जरिए फैले और युवाओं को जोड़ा।
6. आर्थिक असमानता और ब्रेन ड्रेन
• पाकिस्तान की 30% से ज्यादा जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे है
• शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार में भारी असमानता
• हजारों शिक्षित युवा देश छोड़कर विदेशों की ओर पलायन कर रहे हैं – जिसे “ब्रेन ड्रेन” कहा जाता है
7. अंतरराष्ट्रीय समर्थन और सत्ता का संतुलन
• अमेरिका, सऊदी अरब और चीन ने हमेशा पाकिस्तान की सेना को समर्थन दिया है
• इससे आंतरिक लोकतांत्रिक आंदोलन कमजोर हो गए
• बाहरी ताकतों ने आम जनता की बजाय ताकतवर संस्थाओं को प्राथमिकता दी
निष्कर्ष: पाकिस्तान के भविष्य की लड़ाई
पाकिस्तान की सत्ता आज भी तीन शक्तिशाली स्तंभों – ज़मींदार, सेना और धार्मिक नेतृत्व के इर्द-गिर्द घूमती है। लेकिन अब अवाम, खासकर युवा, महिलाएं और अल्पसंख्यक इस सत्ता संरचना को चुनौती दे रहे हैं। यह संघर्ष सिर्फ राजनीतिक नहीं बल्कि सामाजिक और वैचारिक क्रांति की शुरुआत है।
सवाल है:
क्या पाकिस्तान इस सत्ता त्रिकोण को तोड़कर एक ऐसा समाज बना सकेगा, जहाँ सबको बराबरी, न्याय और अवसर मिले?
यह स्पेशल रिपोर्ट ‘तिरहूत न्यूज़’ की ओर से उन सभी लोकतांत्रिक आवाज़ों को समर्पित है, जो निरंकुश सत्ता के खिलाफ खड़े हैं।