कांग्रेस-राजद के रिश्तों में खटास, “माई बहिन योजना” बनी नई जंग की वजह!

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कांग्रेस-राजद के रिश्तों में खटास, “माई बहिन योजना” बनी नई जंग की वजह!
रिपोर्टर: धीरज ठाकुर | तिरहूत न्यूज़
बिहार की राजनीति एक बार फिर गर्माई हुई है। विधानसभा चुनाव से पहले महागठबंधन के दो बड़े साथी – कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) – के बीच खींचतान तेज हो गई है। ताजा विवाद की जड़ बनी है महिलाओं को लेकर लाई गई एक नई योजना, जिसे कांग्रेस ने “माई बहिन मान योजना” नाम से लांच किया है। इस स्कीम ने तेजस्वी यादव की पहले से प्रचारित योजना “माई बहिन योजना” पर सीधा प्रहार किया है।
कांग्रेस ने हाईजैक की तेजस्वी की स्कीम?
मंगलवार को पटना में कांग्रेस महिला प्रकोष्ठ की राष्ट्रीय अध्यक्ष अलका लांबा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर एलान किया कि महागठबंधन की सरकार बनते ही बिहार की हर जरूरतमंद महिला को प्रतिमाह 2500 रुपये दिए जाएंगे। उन्होंने इसे कांग्रेस की गारंटी बताया और ‘माई बहिन मान योजना’ की शुरुआत की

लेकिन इस योजना को लेकर विवाद तब बढ़ा जब इसके पोस्टर और बैनर से राजद और तेजस्वी यादव पूरी तरह नदारद रहे। कांग्रेस ने इसे महागठबंधन की स्कीम बताया, पर सारी तस्वीरें कांग्रेस नेताओं की थीं। राजनीतिक जानकार इसे तेजस्वी की योजना को ‘हाईजैक’ करने की कोशिश मान रहे हैं।
अंदर ही अंदर बढ़ रही दूरी
यह पहली बार नहीं है जब कांग्रेस ने तेजस्वी यादव की राजनीति में हस्तक्षेप करने की कोशिश की हो। इससे पहले जातीय जनगणना के मुद्दे पर राहुल गांधी के बयान ने तेजस्वी को असहज कर दिया था। तेजस्वी जहां जातीय जनगणना को अपनी बड़ी उपलब्धि बताते हैं, वहीं राहुल गांधी ने इसे ‘राजनीति को बांटने वाला कदम’ कहा था।
अब कांग्रेस ने दलित राजनीति में भी घुसपैठ की कोशिश की है। राहुल गांधी नालंदा में दलित सम्मेलन करने वाले हैं, जो राजद के पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लगाने का संकेत माना जा रहा है।
इतिहास भी गवाह है…
यह खींचतान कोई नई बात नहीं है। 2010 के चुनाव में कांग्रेस ने राजद से अलग होकर सभी 243 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ा था और केवल 4 सीटें जीत पाई थी। 2015 में दोबारा राजद के साथ आई, तो 27 सीटें मिलीं। लेकिन आज भी राज्य की जमीनी राजनीति में कांग्रेस की मौजूदगी सीमित है।
राजनीति के जानकारों का मानना है कि कांग्रेस एक बार फिर अपने अस्तित्व की तलाश में है और वह तेजस्वी यादव के नेतृत्व को चुनौती देकर बिहार में स्वतंत्र ताकत बनने की कोशिश कर रही है।
क्या होगा महागठबंधन का भविष्य?
महागठबंधन को भाजपा के खिलाफ एकजुट होकर लड़ना है, लेकिन सहयोगी दलों की अंदरूनी लड़ाई कहीं न कहीं जनता के सामने गलत संदेश दे रही है। कांग्रेस का यह कदम भले ही रणनीतिक हो, लेकिन इससे गठबंधन में अविश्वास और असहजता बढ़ना तय है।
निष्कर्ष:
बिहार की राजनीति में कांग्रेस और राजद की दूरी अगर इसी तरह बढ़ती रही, तो महागठबंधन की एकता खतरे में पड़ सकती है। आने वाले समय में दोनों दलों की रणनीति ही तय करेगी कि वे एकसाथ आगे बढ़ते हैं या फिर इतिहास खुद को दोहराता है।

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