क्या मंगनी लाल मंडल के जरिए अति पिछड़ों में पैठ बना पाएगी राजद?

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स्पेशल स्टोरी:

लेखक: धीरज ठाकुर | तिरहूत न्यूज़

प्रकाशन तिथि: 16 जून 2025

बिहार की राजनीति में नया दांव: मंगनी लाल मंडल की ताजपोशी से अति पिछड़ों पर राजद की निगाहें

बिहार की सियासत एक बार फिर निर्णायक मोड़ पर है। विधानसभा चुनाव 2025 से पहले राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने एक बड़ा राजनीतिक कदम उठाया है—77 वर्षीय मंगनी लाल मंडल को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपना। यह केवल एक संगठनात्मक फेरबदल नहीं, बल्कि अति पिछड़ा वर्ग (EBC) के बीच अपनी राजनीतिक पैठ बढ़ाने की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है।

क्यों अहम है यह कदम?

राजद की यह चाल ऐसे वक्त पर आई है, जब नीतीश कुमार का पारंपरिक अति पिछड़ा समर्थन आधार असमंजस में दिख रहा है। बेरोजगारी, शिक्षा और अवसरों की कमी को लेकर अति पिछड़ा युवाओं में असंतोष बढ़ा है। ऐसे में लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव की जोड़ी इस असंतोष को राजनीतिक समर्थन में बदलना चाहती है।

मंगनी लाल मंडल: अनुभव और सामाजिक पहचान का संगम

मंगनी लाल मंडल राजनीति के अनुभवी खिलाड़ी हैं। वे विधान परिषद, लोकसभा और राज्यसभा—तीनों सदनों का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। साथ ही वे कर्पूरी ठाकुर की समाजवादी राजनीति से भी गहराई से जुड़े रहे हैं। मंडल धानुक जाति से आते हैं, जो बिहार के अति पिछड़ा वर्ग में प्रभावशाली मानी जाती है, खासकर कोसी, मिथिलांचल और सीमांचल क्षेत्रों में।

राजद जानती है कि 2020 में वह सत्ता के बहुत करीब थी। अब पार्टी का लक्ष्य केवल सत्ता हासिल करना नहीं, बल्कि नए सामाजिक समीकरण तैयार करना भी है।

क्या नीतीश का किला डगमगाएगा?

यह कहना अभी जल्दबाजी होगा कि मंगनी लाल मंडल की नियुक्ति से अति पिछड़ा वोट बैंक राजद के पाले में आ जाएगा। नीतीश कुमार ने दशकों तक इस वर्ग को योजनाओं और प्रतिनिधित्व के जरिए जोड़ा है। लेकिन बदले हालात और युवा मतदाताओं की नई अपेक्षाओं के बीच राजद के पास अब संवाद और समावेश की एक नई स्क्रिप्ट है।

कुशवाहा के बाद अब अति पिछड़े

लोकसभा चुनाव 2024 में राजद ने कुशवाहा समुदाय पर खास फोकस किया था। अभय कुशवाहा की जीत और अन्य क्षेत्रों में बढ़ा वोट शेयर इस रणनीति की सफलता का प्रमाण है। अब पार्टी यही प्रयोग अति पिछड़ों पर कर रही है, और मंगनी लाल मंडल उसके प्रमुख चेहरे बनकर उभरे हैं।

निष्कर्ष

राजद की यह नई रणनीति जातीय राजनीति के उस बदलते दौर की झलक है, जहां केवल समीकरण नहीं, भरोसे का पुनर्निर्माण जरूरी है। अगर मंगनी लाल मंडल, अति पिछड़ों के बीच संवाद और प्रतिनिधित्व का प्रभावी माध्यम बन पाते हैं, तो यह दांव लालू-तेजस्वी की राजनीति को निर्णायक बढ़त दिला सकता है।
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