
मुजफ्फरपुर। महज 18 साल की उम्र में देश के लिए फांसी के फंदे को हंसते-हंसते गले लगाने वाले अमर शहीद खुदीराम बोस का सोमवार को 118वां शहादत दिवस मनाया गया। अहले सुबह 3 बजे ही मुजफ्फरपुर सेंट्रल जेल का गेट खुला और परिसर देशभक्ति की भावना से गूंज उठा।
जेल में देशभक्ति का माहौल
जेल रंगीन बल्बों से सजा था, हवा में हुमाद की भीनी खुशबू फैली थी। बैकग्राउंड में वही गीत गूंज रहा था — ‘एक बार विदाई दे मां घूरे आसी, हांसी हांसी परबो फांसी…’ जिसे गाते हुए खुदीराम ने बलिदान दिया था। सुबह 3 बजे से ही लोगों की भीड़ जेल गेट पर जुटने लगी।
अधिकारियों ने दी सलामी
तिरहुत प्रक्षेत्र के कमिश्नर, डीएम सुब्रत सेन, एसएसपी, सिटी एसपी, एएसपी टाउन, एस पूर्वी, मिठनपुरा थानाध्यक्ष समेत कई अधिकारी समय पर पहुंचे। मेदिनापुर से आए लोग शहीद के गांव की माटी और काली मंदिर का प्रसाद लेकर आए। फांसी स्थल पर माटी में पौधे लगाए गए और प्रसाद अर्पित किया गया।
ठीक 3:50 बजे, उसी समय जब 11 अगस्त 1908 को खुदीराम को फांसी दी गई थी, उपस्थित लोगों और अधिकारियों ने उन्हें सलामी दी और पुष्पांजलि अर्पित की। इसके बाद सभी उस ऐतिहासिक सेल में पहुंचे जहां खुदीराम को रखा गया था।
“युवाओं के लिए अमर प्रेरणा”
डीएम सुब्रत सेन ने कहा, “18 वर्ष से कम उम्र में खुदीराम ने जो बलिदान दिया, वह युवाओं के लिए अमर प्रेरणा है। हमें देश की एकता और अखंडता के लिए उनसे सीख लेनी चाहिए।”
किंग्जफोर्ड पर हमला और गिरफ्तारी
1905 में बंगाल विभाजन के विरोध में आंदोलन तेज हुआ। कलकत्ता के मजिस्ट्रेट किंग्जफोर्ड द्वारा क्रांतिकारियों पर क्रूर दंड दिए जाने से आक्रोशित होकर खुदीराम और प्रफुल चंद्र चाकी ने 30 अप्रैल 1908 को मुजफ्फरपुर में उसके बंगले के पास बग्घी पर बम फेंका। गाड़ी में मजिस्ट्रेट नहीं थे, लेकिन दो महिलाओं की मौत हो गई।
इसके बाद खुदीराम को समस्तीपुर के पूसा स्टेशन से गिरफ्तार कर मुजफ्फरपुर लाया गया। स्पीडी ट्रायल में उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई और महज 18 साल की उम्र में उन्होंने देश के लिए प्राण न्योछावर कर दिए।