एनएचआरसी के आदेश के बावजूद विफल रही बिहार सरकार!

Tirhut News

मुजफ्फरपुर- जिले के चर्चित किडनी कांड मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के आदेश के बावजूद बिहार सरकार विफल रही और सुनीता के लिए किडनी की व्यवस्था नहीं कर सकी। इसका नतीजा यह हुआ कि सुनीता को अपनी जान गँवानी पड़ी। आज सुनीता ने एसकेएमसीएच में आखिरी साँस ली।


  विदित हो कि पीड़ित महिला सुनीता देवी के ओवरी के ऑपरेशन के दौरान दोनों किडनी निकालने का मामला प्रकाश में आने के बाद मानवाधिकार अधिवक्ता एस. के. झा ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग एवं राज्य मानवाधिकार आयोग में याचिका दाखिल की थी, जिसपर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने बिहार सरकार को किडनी ट्रांसप्लांट की व्यवस्था करने का आदेश दिया था, लेकिन मामले में सरकार का रवैया शुरू से ही काफी निराशाजनक था।


   बताते चले कि जिले के सकरा थाने के मथुरापुर गाँव की निवासी सुनीता देवी को पेट में दर्द था, जिसका ईलाज वहीं पर बरियारपुर के शुभकान्त क्लिनिक में एक झोलाछाप चिकित्सक डॉक्टर पवन कुमार के द्वारा किया गया। डॉक्टर पवन कुमार ने महिला के गर्भाशय में ट्यूमर होने की बात कही और 3 सितम्बर को महिला का ऑपरेशन किया। ऑपरेशन के बाद सुनीता की तबियत बिगड़ने लगी, शरीर में सूजन होने लगा। तब जाकर महिला के परिजनों के द्वारा मुजफ्फरपुर के एसकेएमसीएच में सुनीता का सी.टी. स्कैन कराया गया, जिसकी रिपोर्ट में दोनों किडनी दृश्यमान नहीं हैं, ऐसा रिपोर्ट आया। ओवरी ऑपरेशन के दौरान किडनी गायब होने की एफ.आई.आर. के बाद प्रशासनिक अधिकारी सकते में आये और जाँच शुरू हुई, तब मालूम चला कि उक्त क्लिनिक सरकार के मानदंड के अंतर्गत कार्य नहीं कर रही हैं।
        मामले के सम्बन्ध में सकरा  (बरियारपुर ओपी ) थाना कांड संख्या – 461/22 अभियुक्तों के विरुद्ध दर्ज किया गया, जिसमें नामजद अभियुक्त डॉ. पवन कुमार, आर. के. सिंह, संगीता देवी एवं अन्य दो अज्ञात के विरुद्ध मामला सत्य पाया गया है तथा प्राथमिक अभियुक्त डॉ. पवन कुमार को 7 वर्ष के कारावास की सजा भी सुनाई गई।
          मामले के सम्बन्ध में मानवाधिकार अधिवक्ता एस. के. झा ने व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए कहा कि सुनीता की मौत राज्य के पूरे स्वास्थ्य महकमे और प्रशासनिक व्यवस्था पर सवालिया निशान खड़ा करता है। यह सुनीता की मौत नहीं, उन सभी उम्मीदों की मौत है, जो राज्य भर के लोगों ने सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था से लगा रखी थी। प्रश्न अब भी शेष है कि क्या एक गरीब को ईलाज का हक़ नहीं।

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