शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को श्रद्धांजलि अर्पित, मुजफ्फरपुर में शहादत दिवस मनाया गया

Tirhut News

शहादत दिवस पर शहीदों को नमन

“शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले…”
मुजफ्फरपुर: आजादी के अमर नायक भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को श्रद्धांजलि देने के लिए मुजफ्फरपुर के हरी सभा मध्य विद्यालय में फ्रेंड्स ऑफ नरेंद्र मोदी, मुजफ्फरपुर के तत्वावधान में शहादत दिवस मनाया गया। इस अवसर पर वक्ताओं ने उनके बलिदान को याद करते हुए कहा कि उनकी कुर्बानी आज भी हमें मातृभूमि के प्रति समर्पण की प्रेरणा देती है।

बलिदान, जिसने आजादी की अलख जगाई

23 मार्च 1931 की वह रात भारतीय इतिहास के पन्नों में हमेशा अमर रहेगी, जब ब्रिटिश हुकूमत ने भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दे दी। मात्र 23 वर्ष की आयु में भगत सिंह ने जिस वीरता से देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी, वह हर युवा के लिए प्रेरणास्रोत है।

शहीद दिवस कार्यक्रम में वक्ताओं ने कहा,

“इन वीर क्रांतिकारियों ने अपने शौर्य, पराक्रम व साहस से देश के करोड़ों युवाओं के मन में स्वाभिमान व क्रांतिभाव का संचार किया।”

देश के प्रति उनका विचार और हमारी जिम्मेदारी

भगत सिंह केवल क्रांतिकारी ही नहीं, बल्कि एक महान विचारक भी थे। उनका मानना था कि “क्रांति की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है।” आज जब देश तकनीकी और आर्थिक प्रगति कर रहा है, तो हमें उनके विचारों से सीख लेकर समाज में बदलाव लाने के लिए कार्य करना चाहिए।

कार्यक्रम की अध्यक्षता संजीव कुमार झा ने की, संचालन सिद्धार्थ सूरी और धन्यवाद ज्ञापन रंजन ओझा ने किया।


सामाजिक कार्यकर्ताओं की उपस्थिति

इस कार्यक्रम में विभिन्न संगठनों से जुड़े लोग और सामाजिक कार्यकर्ता मौजूद थे। प्रमुख रूप से उपस्थित हरिसभा दुर्गा पूजा समिति के अध्यक्ष दुर्गापद दास, राकेश पटेल, अधिराज किशोर, पंकज प्रकाश, राजा सिंह, प्रशांत राज, रवि गुप्ता, मुकेश लाल गुप्ता, विकास शर्मा, आकाश पटेल, पंकज चौहान, मोहित कुमार, विश्वास कुशवाहा, आकाश पांडे, बसंत कुमार, नीलमणि सिन्हा, सुभाशीष बोस, देवाशीष घोष, रमन मिश्रा, झूमा दास, आदर्श कुमार, श्रेयस झा सहित अन्य गणमान्य लोग उपस्थित रहे।

निष्कर्ष: क्या आज भी प्रासंगिक हैं भगत सिंह के विचार?

आज के दौर में जब युवा दिशाहीन होते जा रहे हैं, भगत सिंह का जीवन हमें यह सिखाता है कि अपने अधिकारों के लिए जागरूक होना और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना जरूरी है। उनके विचार केवल इतिहास का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि आज भी सामाजिक और राजनीतिक बदलाव के लिए उतने ही प्रासंगिक हैं।

“शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले,

वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा…”

तिरहूत न्यूज की विशेष रिपोर्ट

(रिपोर्ट: धीरज ठाकुर)

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