
मोतिहारी, तिरहूत न्यूज़।
जनता दल यूनाइटेड (JDU) में वक्फ संशोधन बिल को लेकर नाराजगी गहराती जा रही है। पूर्वी चंपारण जिले के ढाका विधानसभा क्षेत्र से जदयू के 15 नेताओं और पदाधिकारियों ने सामूहिक इस्तीफा देकर पार्टी नेतृत्व को बड़ा झटका दिया है। यह इस्तीफे वक्फ बिल के पास होने के महज चार दिन बाद आए हैं, जब पहले ही कई अल्पसंख्यक नेता पार्टी को अलविदा कह चुके हैं।
वक्फ बिल बना असंतोष की वजह
इस्तीफा देने वाले नेताओं का कहना है कि उन्हें भरोसा था कि पार्टी वक्फ संशोधन बिल में अल्पसंख्यक समुदाय की भावनाओं का ख्याल रखेगी, लेकिन जदयू नेतृत्व ने “विश्वासघात” किया है। ढाका प्रखंड युवा जदयू अध्यक्ष गौहर आलम ने कहा,
“पार्टी ने हमलोगों से वादा किया था कि अल्पसंख्यक भावनाओं की रक्षा होगी। लेकिन बिल पास कराकर हमारे विश्वास को तोड़ा गया। इसलिए हमने पार्टी छोड़ने का फैसला लिया है।”
इस्तीफा देने वालों में कौन-कौन?
ढाका प्रखंड और नगर परिषद से इस्तीफा देने वालों में कई प्रमुख पदाधिकारी शामिल हैं:
• गौहर आलम (प्रखंड अध्यक्ष, युवा जदयू)
• मो. मुर्तजा (नगर कोषाध्यक्ष)
• मो. शब्बीर आलम (प्रखंड युवा उपाध्यक्ष)
• मौसिम आलम (नगर अध्यक्ष, अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ)
• जफीर खान (नगर सचिव)
• मो. आलम (नगर महासचिव)
• मो. तुरफैन (प्रखंड युवा महासचिव)
• मो. मोतिन (नगर उपाध्यक्ष)
• सुफैद अनवर (करमावा पंचायत युवा अध्यक्ष)
• मुस्तफा कमाल उर्फ अफरोज (प्रखंड युवा उपाध्यक्ष)
• फिरोज सिद्दिकी (प्रखंड युवा सचिव)
• सलाउद्दीन अंसारी (नगर महासचिव)
• सलीम अंसारी (नगर महासचिव)
• एकरामुल हक (नगर सचिव)
• सगीर अहमद (नगर सचिव)
इन सभी नेताओं ने अपना इस्तीफा प्रदेश अध्यक्ष और जिलाध्यक्ष को सौंप दिया है।
पार्टी की प्रतिक्रिया – कोई बड़ा असर नहीं!
हालांकि, जदयू जिला नेतृत्व इसे ज्यादा गंभीर नहीं मान रहा है। पार्टी के जिला अध्यक्ष का कहना है कि,
“हम एक लोकतांत्रिक पार्टी हैं। जिन नेताओं ने इस्तीफा दिया है, उनसे बातचीत की जाएगी। पार्टी ने बिल में कई सुझाव दिए थे, जो शामिल किए गए हैं।”
पहले भी हो चुकी है इस्तीफों की बौछार
इससे पहले 4 अप्रैल को भी जदयू के कई मुस्लिम नेताओं ने इस्तीफा दिया था। इनमें नवाज मलिक (पूर्व प्रदेश सचिव), कासिम अंसारी, शहनवाज आलम और मोहम्मद तबरेज़ सिद्दीकी अलीग जैसे नाम शामिल थे। हालांकि इनमें से कुछ नेताओं को पार्टी से आधिकारिक तौर पर जोड़े जाने से इनकार किया गया था।
विश्लेषण: क्या जदयू की अल्पसंख्यक पकड़ कमजोर पड़ रही है?
पिछले कुछ महीनों से जदयू की अल्पसंख्यक वोट बैंक पर पकड़ ढीली पड़ती दिख रही है। एक के बाद एक इस्तीफे इस बात का संकेत हैं कि वक्फ जैसे संवेदनशील मुद्दे पर पार्टी का रुख उसे अपने पुराने समर्थकों से दूर कर सकता है।
अब देखना यह है कि क्या नीतीश कुमार इस राजनीतिक संकट को टाल पाते हैं या यह बगावत पार्टी के लिए एक बड़े राजनीतिक नुकसान की शुरुआत साबित होगी।
रिपोर्ट: धीरज ठाकुर | संपादन: तिरहूत न्यूज़ डेस्क