तिरहूत समाचार से तिरहूत न्यूज़ तक: हिंदी पत्रकारिता की विरासत, संघर्ष और संकल्प

Tirhut News

✍️ विशेष संपादकीय

हिंदी पत्रकारिता दिवस विशेष: तिरहूत समाचार से तिरहूत न्यूज़ तक – एक विरासत, एक संघर्ष, एक संकल्प

लेखक: धीरज ठाकुर, संस्थापक-संपादक, तिरहूत न्यूज़

📍30 मई | हिंदी पत्रकारिता दिवस विशेष

“पत्रकारिता केवल खबर नहीं, ज़िम्मेदारी है। और हिंदी पत्रकारिता – भारत की आत्मा की आवाज़।”

आज जब हम हिंदी पत्रकारिता दिवस मना रहे हैं, तो यह केवल ‘उदन्त मार्तण्ड’ को याद करने का दिन नहीं है। यह दिन है उन सभी संघर्षों, आवाज़ों, और कलमों को नमन करने का, जिन्होंने सच कहने की कीमत चुकाई — कभी जूतों से, कभी जेल से, और कभी गुमनामी से।

🕰️ 1909 से शुरू हुई तिरहूत की आवाज़

बिहार के मुज़फ्फरपुर की धरती ने 1909 में जब “तिरहूत समाचार” के रूप में अपनी पहली हिंदी पत्रकारिता की आवाज़ उठाई, तब न टेक्नोलॉजी थी, न प्रेस की स्वतंत्रता।

फिर भी इस अखबार ने अंग्रेजों के खिलाफ वह बातें कही, जो लोग डर के मारे सोच भी नहीं पाते थे।

“तिरहूत समाचार” एक समाचार पत्र से बढ़कर एक जन चेतना का आंदोलन था। यह अख़बार हिंदी में आम जनता की बात करता था — वही जनता जिसे अंग्रेज सिर्फ ‘प्रजा’ समझते थे।

🔄 और अब, 2019 में तिरहूत न्यूज़ की शुरुआत

साल 2019 में, उसी विरासत को लेकर मैंने — धीरज ठाकुर, एक पत्रकार, एक रिपोर्टर, और एक बिहारी —

“तिरहूत न्यूज़” की नींव रखी।

मैंने नाम नहीं चुना, मैंने विरासत को उठाया।

मैंने रास्ता नहीं बनाया, मैंने उस पगडंडी को फिर से चलने लायक बनाया जो 1909 में शुरू हुई थी।

• कोई बड़ी टीम नहीं थी

• कोई स्पॉन्सर नहीं

• कोई संस्थागत सपोर्ट नहीं

बस थी एक सच्ची नीयत, एक मोबाइल कैमरा, और हिंदी में सच कहने का जज़्बा।

🧱 संघर्ष की ईंटें: मेरा सफर, मेरी जद्दोजहद

मैंने पत्रकारिता सीखी ज़मीन से —

सहारा समय, ETV भारत, पब्लिक वाइब, इनशॉर्ट्स — सब जगह रहा, लेकिन एक बात समझ में आई:

“बड़ी संस्थाओं में आपकी आवाज़ का वज़न टीआरपी से तय होता है।”

मैं इससे अलग कुछ बनाना चाहता था —

जहाँ लोकल मुद्दे, गांव की आवाज़, और जनता का दर्द बिना काटे-छाँटे सामने आए।

इसी सोच ने जन्म दिया — तिरहूत न्यूज़ को।

🌱 विरासत को जीवित रखने का संकल्प

तिरहूत न्यूज़ सिर्फ एक डिजिटल न्यूज़ पोर्टल नहीं है।

यह एक संस्कार केंद्र भी है, जहाँ मैंने दर्जनों युवा पत्रकारों को नि:शुल्क प्रशिक्षण दिया

वे आज आजतक, ज़ी न्यूज़, दैनिक भास्कर जैसे बड़े प्लेटफॉर्म्स में काम कर रहे हैं।

हम एक सपना देख रहे हैं — तिरहूत समाचार को फिर से प्रिंट संस्करण में शुरू करने का।

यह सिर्फ इतिहास नहीं, भविष्य की ज़रूरत है।

📢 आज की पत्रकारिता में हिंदी की हालत

आज की पत्रकारिता में हिंदी कहीं न्यूज़ रूम की भाषा नहीं, सोशल मीडिया की टीआरपी भाषा बनती जा रही है।

बोलने की आज़ादी है, लेकिन सुनने वाला कौन?

हिंदी में खबर है, लेकिन गहराई नहीं।

हमें चाहिए:

• वह हिंदी पत्रकारिता, जो जड़ों से जुड़ी हो

• जो जनता की ज़ुबान में बात करे, और

• जो सत्ता से सवाल पूछना न भूले

🕯️ निष्कर्ष: कलम की लौ अब भी जल रही है

“हम बदले हैं, माध्यम बदला है, लेकिन हमारा मिशन नहीं बदला।”

“हमने कल भी हिंदी में सच कहा था, आज भी कहते हैं — और कल भी कहेंगे।”

तिरहूत समाचार से तिरहूत न्यूज़ तक की यह यात्रा एक विरासत की नहीं, एक संकल्प की यात्रा है।

और जब तक यह संकल्प जीवित है —

तिरहूत की आवाज़, जनता की जुबानी — यूँ ही गूंजती रहेगी।

✍️

धीरज ठाकुर

संस्थापक-संपादक

Tirhut News | तिरहूत न्यूज़

“हिंदी पत्रकारिता को फिर से जन-आंदोलन बनाने का प्रयास!”

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