

विशेष रिपोर्ट: बिहार की राजनीति में बढ़ता जातीय ध्रुवीकरण — क्या मीडिया बन सकता है समाधान का रास्ता?
✍️ तिरहूत न्यूज़ विशेष लेख | लेखक: धीरज ठाकुर
📍 मुजफ्फरपुर/पटना, जून 2025
बिहार की राजनीति में जातीय पहचान, आरोप-प्रत्यारोप और वर्गीय टकराव की घटनाएं पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ी हैं। सोशल मीडिया के आगमन से अब ये बहसें सड़कों से स्क्रीन तक पहुंच चुकी हैं। ऐसे समय में सवाल यह है — क्या मीडिया इस ध्रुवीकरण को और भड़का रहा है, या इसे शांत करने का माध्यम बन सकता है?
जातीय राजनीति: परंपरा या समस्या?
• बिहार की राजनीतिक व्यवस्था में जाति एक स्थायी आधार रही है। चुनावी रणनीति से लेकर मुद्दों की प्राथमिकता तक जातीय समीकरणों पर निर्भर है।
• परंतु अब यह एक समाज को विभाजित करने वाला तत्व बनता जा रहा है।
वर्तमान स्थिति: सोशल मीडिया बना नया रणक्षेत्र
• राजनीतिक नेताओं की पोस्टों से लेकर आम लोगों की टिप्पणियों तक, अब हर प्लेटफॉर्म पर जातीय पहचान की चर्चा है।
• दलित, सवर्ण, पिछड़ा, मुस्लिम— हर वर्ग की अपनी-अपनी “राजनीतिक ज़ुबान” बन चुकी है।
मीडिया की भूमिका: भड़काए या बुझाए?
दृष्टिकोणविवरणनकारात्मक भूमिकाकुछ पोर्टल और चैनल सनसनी फैलाने के लिए जातीय विवादों को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाते हैं।सकारात्मक भूमिकाकुछ मीडिया संस्थान एकता, समाधान, और संविधानिक मूल्यों को प्राथमिकता देते हैं।
तिरहूत न्यूज़ का रुख साफ है — “हम नफरत के पक्ष में नहीं, समाधान और समाज सुधार के साथ हैं।”
🔍 समाधान क्या हो सकते हैं?
• ✅ सामाजिक संवाद को बढ़ावा देना
• संवाद, बहस और विचार-विमर्श का मंच देना, लेकिन बिना उकसावे या पक्षपात के।
• ✅ युवा नेतृत्व को जाति से ऊपर उठाना
• युवाओं को यह सिखाना कि उनकी पहचान उनके विचार, काम और दृष्टिकोण से बने — न कि जाति से।
• ✅ ग्राउंड रिपोर्टिंग में संतुलन
• गांव और ज़मीनी सच्चाई को जाति के चश्मे से नहीं, नागरिकता और मानवता के आधार पर दिखाना।
धीरज ठाकुर का संपादकीय संदेश:
“मैं भूमिहार समाज से आता हूं, लेकिन तिरहूत न्यूज़ सिर्फ किसी एक जाति या वर्ग की आवाज़ नहीं है — यह पूरे तिरहूत क्षेत्र की आवाज़ है।
हम समाज को तोड़ने वाली नहीं, जोड़ने वाली पत्रकारिता करना चाहते हैं।
जाति नहीं, विकास हमारा एजेंडा है।”
निष्कर्ष:
बिहार को आज जातीय टकराव नहीं, राजनीतिक शुद्धिकरण, नैतिक पत्रकारिता और युवाओं के नेतृत्व की ज़रूरत है।
मीडिया यदि चाहे, तो वह इस संक्रमणकाल में एक पथ-प्रदर्शक बन सकता है।