
गया/देवघर। सावन के पावन महीने में बिहार के गया जिले से एक भावनात्मक यात्रा शुरू हुई, जो देवघर बाबा धाम तक पहुंची। खास बात ये रही कि इस बार कांवड़ यात्रा पर ‘माउंटेन मैन’ दशरथ मांझी का परिवार भी निकला। लेकिन यह यात्रा सिर्फ श्रद्धा की नहीं, एक राजनीतिक भावना की भी अभिव्यक्ति बन गई।
मन्नत: “राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाइए बाबा…”
दशरथ मांझी के दामाद मिथुन मांझी और पोती अंशु देवी ने 30 जुलाई को सुल्तानगंज से जल उठाया और पैदल यात्रा कर बाबा बैद्यनाथ धाम पहुंचे।
देवघर में बाबा को जल अर्पित करते हुए उन्होंने कहा,
“हमने बाबा से मन्नत मांगी है कि राहुल गांधी देश के प्रधानमंत्री बनें। उन्होंने हमारे परिवार के लिए बिना मांगे घर बनवाया। अब हम उनके लिए दिल से दुआ कर रहे हैं।“
‘बिना बोले घर बनवाया राहुल गांधी ने’
मिथुन मांझी ने बताया कि राहुल गांधी ने उनके ससुर भागीरथ मांझी के लिए चार कमरों वाला घर बनवाने की पहल खुद की।
“जो किसी ने नहीं किया, वो राहुल गांधी ने किया। हम उनके ऋणी हैं। अब वो हमारे परिवार के सदस्य जैसे हैं,” – मिथुन मांझी
5 जून 2025: जब राहुल पहुंचे गहलौर गांव
राहुल गांधी ने अपने गया दौरे के दौरान गहलौर गांव में दशरथ मांझी की समाधि पर श्रद्धांजलि दी और उनके परिवार से मुलाकात की।
उसी दिन उन्होंने गरीब परिवार की स्थिति देखकर घर बनवाने का फैसला किया। मकान का निर्माण कार्य इस वक्त जारी है।
कांग्रेस से जुड़ रहा मांझी परिवार
इस मुलाकात के बाद दशरथ मांझी के बेटे भागीरथ मांझी ने कांग्रेस की सदस्यता भी ले ली। वे अब पार्टी टिकट पर चुनाव लड़ने की इच्छा जता चुके हैं।
वहीं मिथुन मांझी, जो अभी जदयू में हैं और बोधगया मंदिर प्रबंधन समिति के सदस्य भी हैं, अब विचारधारा के स्तर पर कांग्रेस के करीब आ चुके हैं।
“राहुल गांधी ने बिना बोले जो किया, उसने दिल छू लिया,” – मिथुन मांझी
‘राहुल गांधी अब हमारे जैसे हैं’
दशरथ मांझी की पोती अंशु देवी ने कहा,
“जब राहुल गांधी फिर बिहार आएंगे, तो हम उन्हें बाबा बैद्यनाथ का प्रसाद जरूर खिलाएंगे।“
“हमने जो मन्नत अपने परिवार के लिए मांगी, वही उनके लिए भी मांगी।“
संघर्ष की विरासत, उम्मीद की राजनीति
दशरथ मांझी को संघर्ष और संकल्प का प्रतीक माना जाता है — जिन्होंने पहाड़ काटकर सड़क बना दी। अब उनके परिवार को उम्मीद है कि राहुल गांधी उनके उस संघर्ष को राजनीतिक स्तर पर आगे बढ़ाएंगे।
उनके इस कदम को ग्रामीण और दलित वर्गों में कांग्रेस के प्रति बढ़ते भरोसे के रूप में भी देखा जा रहा है।
राहुल गांधी का यह मानवीय पहलू अब सिर्फ एक खबर नहीं, बल्कि 2025 की राजनीति में एक संकेत बन गया है — संघर्ष की विरासत और संवेदना की राजनीति अब साथ चल रही है।