
मुजफ्फरपुर | विशेष रिपोर्ट | तिरहूत न्यूज़
बिहार में जातीय सर्वे को लेकर भूमिहार ब्राह्मण समाज में जबरदस्त नाराजगी है। सर्वे रिपोर्ट में समाज को “भूमिहार ब्राह्मण” की जगह केवल “भूमिहार” लिखा गया है। इस बदलाव को समाज ने सामाजिक और सांस्कृतिक अस्मिता से छेड़छाड़ माना है। विरोध में अब समाज सड़कों पर उतरने की तैयारी में है।
इसी कड़ी में 7 अगस्त को मुजफ्फरपुर में होने वाली ‘विराट भूमिहार ब्राह्मण जनआक्रोश यात्रा’ से पहले संयोजक डॉ. विजयेश कुमार ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर 10 सूत्रीय मांगों को सार्वजनिक किया है। उन्होंने सरकार से इस ‘सर्वे विसंगति’ को तुरंत ठीक करने की मांग की है।
प्रेस विज्ञप्ति में क्या कहा गया?
डॉ. विजयेश कुमार द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है:
“भूमिहार ब्राह्मण समाज को जातीय सूची में सही नाम से अंकित नहीं किया गया है। वर्षों से सरकारी दस्तावेजों, जाति प्रमाणपत्रों और सामाजिक अभिलेखों में ‘भूमिहार ब्राह्मण’ दर्ज रहा है, लेकिन इस बार जातीय सर्वे में केवल ‘भूमिहार’ लिखा गया। यह एक सुनियोजित कोशिश है समाज की पहचान को धुंधला करने की।”
प्रेस विज्ञप्ति में रखी गई 10 प्रमुख मांगें:
• जातीय सूची में “भूमिहार ब्राह्मण” के नाम से प्रविष्टि की जाए।
• भूमिहार ब्राह्मण समाज की अलग से जातीय गणना करवाई जाए।
• डिजिटल दस्तावेज़ों में जाति के नाम की सही एंट्री सुनिश्चित की जाए।
• केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं में ‘भूमिहार ब्राह्मण’ को शामिल किया जाए।
• सभी प्रमाणपत्रों और दस्तावेजों में ‘भूमिहार ब्राह्मण’ नाम दर्ज हो।
• सरकारी सेवाओं में समाज के प्रति हो रही उपेक्षा और उपहास बंद हो।
• समाज को शैक्षणिक, आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से पिछड़े वर्ग की सुविधाएं दी जाएं।
• जातीय प्रमाणपत्र में स्पष्ट रूप से ‘भूमिहार ब्राह्मण’ लिखा जाए।
• अनाज, शिक्षा और स्वास्थ्य पर टैक्स में राहत दी जाए।
• सभी विभागों द्वारा जारी किए जाने वाले प्रमाणपत्रों में ‘भूमिहार ब्राह्मण’ नाम सुनिश्चित हो।
“यह सिर्फ एक शब्द नहीं, समाज की पहचान है” — संयोजक
डॉ. विजयेश कुमार ने कहा कि सरकार की यह चूक सिर्फ तकनीकी नहीं, सामाजिक अस्वीकृति का प्रतीक बनती जा रही है। उन्होंने कहा:
“जब सरकारी प्रमाणपत्रों में ‘भूमिहार ब्राह्मण’ लिखा जाता है, तो सर्वे में इसे बदलने का अधिकार किसे है? क्या ब्राह्मण शब्द हटाकर हमारी सांस्कृतिक विरासत को मिटाने की कोशिश हो रही है?”
राजनीतिक असर और चुनावी पृष्ठभूमि
बिहार में 2025 विधानसभा चुनाव नजदीक हैं। भूमिहार समाज परंपरागत रूप से सत्ता समीकरणों में अहम भूमिका निभाता रहा है। ऐसे में यह नाराजगी किसी भी राजनीतिक दल के लिए भारी पड़ सकती है।
विपक्षी दल इस मुद्दे को “सवर्ण विरोधी रवैये” के रूप में प्रचारित कर रहे हैं, जबकि सत्ताधारी गठबंधन ने अभी तक चुप्पी साध रखी है।
900 गांवों में जनसंपर्क, 385 जगहों से टीम रवाना
प्रेस विज्ञप्ति में बताया गया कि जन आक्रोश यात्रा को सफल बनाने के लिए 900 से अधिक गांवों में जनसंपर्क किया गया है। 385 जगहों से टीमें मुजफ्फरपुर के लिए रवाना होंगी, जिनमें युवाओं, महिलाओं और ग्रामीण समाज के प्रतिनिधियों की बड़ी भागीदारी होगी।
“7 अगस्त को मुजफ्फरपुर में 25,000 से अधिक लोग शामिल होंगे और सरकार को बता देंगे कि हमारी पहचान कोई मिटा नहीं सकता।” — डॉ. विजयेश कुमार
प्रशासन अलर्ट, लेकिन सरकार खामोश
मुजफ्फरपुर पुलिस और जिला प्रशासन ने यात्रा को देखते हुए सुरक्षा और ट्रैफिक के विशेष इंतजाम शुरू कर दिए हैं। हालांकि अब तक सरकार की ओर से इस मुद्दे पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, जो समाज में बेचैनी को और बढ़ा रहा है।
निष्कर्ष: समाज गरम, सरकार शांत… चुनावी समीकरण प्रभावित होना तय
भूमिहार ब्राह्मण समाज इस समय “पहचान की रक्षा” के लिए एकजुट हो रहा है। अगर सरकार ने जल्द सुधार नहीं किया, तो यह नाराजगी सिर्फ जनआक्रोश तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि चुनावी नतीजों में भी झलकेगी। यह स्पष्ट है कि अब यह सिर्फ सर्वे या शब्दों की गलती नहीं, बल्कि सम्मान, अधिकार और अस्तित्व का संघर्ष बन चुका है।
📍 रिपोर्ट: दीक्षा कुमारी , तिरहूत न्यूज़ ब्यूरो
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